अरमान दुल्हन के - 1 एमके कागदाना द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • You Are My Choice - 41

    श्रेया अपने दोनो हाथों से आकाश का हाथ कसके पकड़कर सो रही थी।...

  • Podcast mein Comedy

    1.       Carryminati podcastकैरी     तो कैसे है आप लोग चलो श...

  • जिंदगी के रंग हजार - 16

    कोई न कोई ऐसा ही कारनामा करता रहता था।और अटक लड़ाई मोल लेना उ...

  • I Hate Love - 7

     जानवी की भी अब उठ कर वहां से जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी,...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 48

    पिछले भाग में हम ने देखा कि लूना के कातिल पिता का किसी ने बह...

श्रेणी
शेयर करे

अरमान दुल्हन के - 1

अरमान दुल्हन के भाग -1

नई नई दुल्हन ढे़रों अरमान लिए ससुराल में आई। सोच रही थी कि माता -पिता,भाई-बहनों को छोड़ कर जा रही हूं तो क्या वहां भी सास -ससुर मेरे माता-पिता के समान होंगे।बहन-भाईयों की जगह ननद,देवर, जेठ होंगे।
अपनों को छोड़ने का गम जरूर था किंतु नये रिश्ते में बंधने की खुशी भी तो थी। मायके से विदा हो ससुराल के सपने बुनती रही रास्ते भर। आजतक देखा था नई दुल्हन के आगमन पर कैसा खुशी का माहौल होता है।सास उतारने आती है औरतें के झुरमुट के साथ और लोकगीतों की मिठास कितनी प्यारी लगती है ।
आज वो स्वयं भी बहू बन कर आई है उसके लिए भी तो वही गीत गाया जायेगा जब वो बर्तन उठायेगी।
"ना खुड़काई ना बड़काई सास- बहू की होवैगी लड़ाई"
गाड़ी दरवाजे पर आकर रूकी तो उसकी तंद्रा टूटी। बहुत देर तक गाड़ी में बैठी रही।इंतज़ार करती रही उसकी सासु मां आयेगी प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरेगी। गर्मी में घूंघट मे घुटन गहराती जा रही थी।पसीने से तरबतर सारी देह चिपचिप कर रही थी। प्यास से बूरा हाल हो गया था ।बहुत देर इंतज़ार के बाद तीन-चार औरतें आई।वो किसी को भी नहीं जानती थी।घूंघट में से झांककर देखने का प्रयास कर रही थी । बहुत कोशिश के बाद भी नहीं अनुमान लगा पायी कि ये औरतें कौन- कौन हैं।
"ए बहू तळे नै उतर ले तेरी सासू तो ना आई लै मैएं तारूंगी तन्नै"-एक गौरी सी औरत ने कहा और खिखियाकर हंस पड़ी।
अंधेरे में उबड़खाबड़ धरती पर घूंघट मे से ही देखने का भरसक प्रयास करती हुई वह चली जा रही थी।दोनों ओर से दो औरतों ने यूं कसकर पकड़ रखा था जैसे सिपाही किसी मुजरिम को पकड़ कर रखते हैं कहीं मुजरिम छुड़ाकर भाग न जाए। आषाढ़ मास का अंतिम सप्ताह , गर्मी अपने पूरे यौवन पर ऊपर से भारीभरकम कपड़ों से लदी दुल्हन का ससुराल में आगमन भी अनमना सा।दुल्हन का ससुराल का सारा जोश ठंडा पड़ चूका था।
आंगन में सात बरतन तो रखे थे और उसने बिन खुड़काए उठाए भी मगर वो गीत "ना खुड़काई बड़काई सास- बहु की होवैगी लड़ाई"नदारद था।
उन औरतों ने उसे एक कोने में जहां दीवार पर दो हाथों के छाप एक मेहंदी का और दूसरा घी का लगा रखे थे उसके आगे बैठा दिया गया। किसी ने तरस खाकर पंखे का मुहं दुल्हन की ओर घूमा दिया।दुल्हन को थोड़ी गर्मी से राहत मिली।
नई दुल्हन का घर किसी को कोई सरोकार नहीं था। दुल्हन सोचने लगी - मेरी भाभी के आगमन पर हम सब बच्चे कैसे उनको घेर कर बैठ गए थे। कितने सवाल जवाब कर रहे थे और भाभी मुस्कुराते हुए हमारे साथ बतिया रही थीं।मां भी कितने चाव से भाभी को गाड़ी से उतार कर लाई थी । कितनी औरतें थीं आसपड़ोस की।गीतों से घर गूंज उठा था।
क्रमशः
आगे के भाग पढ़ने के लिए हमसे जुड़े रहिये। दुल्हन के अरमान पूरे होंगे या नहीं, ससुराल में नयी दुल्हन प्यार पायेगी या नहीं जानने के लिए अगले अंक का इंतज़ार कीजिये... दुल्हन की सास उसे उतारने क्यों नहीं आई... जानें अगले अंक में.....

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा